100+ Bhagavad Gita quotes in Hindi | भगवद गीता के सर्वश्रेष्ठ सुविचार, अनमोल वचन

भगवद गीता के 100 उद्धरणों का विस्तृत वर्णन।

100+ Bhagavad Gita quotes in Hindi | भगवद गीता के सर्वश्रेष्ठ सुविचार, अनमोल वचन

Bhagavad Gita quotes in Hindi

भगवद गीता, भारतीय संस्कृति और धर्म का एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसे न केवल हिंदू धर्म के अनुयायी बल्कि पूरी दुनिया के लोग आत्मिक विकास और जीवन जीने की प्रेरणा के लिए पढ़ते हैं। यह महान ग्रंथ अर्जुन और भगवान श्रीकृष्ण के संवाद पर आधारित है, जो महाभारत के युद्ध के मैदान कुरुक्षेत्र में हुआ था। गीता हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे कर्म, धर्म, भक्ति, और ज्ञान की गहरी समझ प्रदान करती है। इसमें श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए शिक्षाएं और सिद्धांत जीवन के हर पहलू को सही दृष्टिकोण से देखने का रास्ता दिखाते हैं।

भगवद गीता के उद्धरण जीवन की गहरी सच्चाईयों को सरल भाषा में समझाने का एक अद्भुत तरीका हैं। ये उद्धरण न केवल धर्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं, बल्कि व्यावहारिक जीवन में आने वाली चुनौतियों से जीवन में मार्गदर्शन करने के लिए भी यह उद्धरण सहायक होते हैं। गीता के श्लोक हमें यह सिखाते हैं कि कैसे नकारात्मक परिस्थितियों में भी मन की शांति बनाए रखें, आत्म-संयम करें, और अपने कर्तव्यों का पालन बिना किसी फल की आशा के करें। इस लेख में, हम भगवद गीता से 100 उद्धरणों का चयन करेंगे, जो आपके जीवन को गहरे और सकारात्मक ढंग से प्रभावित कर सकते हैं। हर उद्धरण के साथ उसका महत्व और उसे जीवन में कैसे लागू किया जा सकता है, इस पर चर्चा करेंगे।

श्रीमद् भगवत् गीता Full Video

संपूर्ण भगवद्गीता (हिन्दी में) Full Bhagavad Gita (In Hindi) | Chapters 1-18

गीता उपदेश Videos

1.कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

"तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने पर है, उसके फलों पर नहीं।"

यह उद्धरण हमें सिखाता है कि हमें सिर्फ अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, न कि उनके परिणामों पर ध्यान देना चाहिए। जीवन में कई बार ऐसा होता है कि हम अपने कार्यों के परिणाम के बारे में चिंता करते हैं, जो हमारी मानसिक शांति को भंग कर देता है। इस श्लोक का संदेश है कि जब तक हम अपने कार्यों को ईमानदारी और समर्पण से करते हैं, परिणाम अपने आप सही होते हैं।

2.योग: कर्मसु कौशलम्॥

"योग वह है जो कर्म में कौशल लाए।"

श्रीकृष्ण का यह संदेश बताता है कि सच्चा योग वह है जो हमें अपने कार्यों में दक्षता और समर्पण के साथ कार्य करने के लिए प्रेरित करे। योग सिर्फ शारीरिक आसनों तक सीमित नहीं है, बल्कि अपने काम में कुशलता और संतुलन बनाए रखना भी योग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

3.संयम को सफलता की कुंजी समझें।

"जो व्यक्ति इन्द्रियों को नियंत्रित करता है, वह आत्मज्ञान प्राप्त करता है।"

इस उद्धरण में श्रीकृष्ण ने कहा है कि इन्द्रियों का संयम व्यक्ति को आत्मज्ञान की ओर अग्रसर करता है। जीवन में हम अक्सर भौतिक इच्छाओं और आकर्षणों के पीछे भागते हैं, लेकिन संयमित जीवन जीने से ही वास्तविक सुख और शांति मिलती है।

4.नित्य बदलती परिस्थितियों में स्थिर बने रहें।

"समत्वं योग उच्यते।"

गीता का यह श्लोक हमें सिखाता है कि योग का असली अर्थ मन की स्थिरता और संतुलन बनाए रखना है, चाहे जीवन में कितनी भी उतार-चढ़ाव की स्थिति हो। खुशियों और दुखों के बीच संतुलन बनाए रखना ही असली योग है।

5.अपने स्वभाव के अनुसार कर्म करें।

"स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।"

यहां श्रीकृष्ण बता रहे हैं कि अपने स्वाभाविक धर्म और कर्तव्यों का पालन करना सबसे श्रेष्ठ है, भले ही वह कितना भी साधारण क्यों न हो। दूसरों के धर्म का पालन करने से डर और असफलता मिलती है। इसलिए व्यक्ति को अपने स्वभाव के अनुसार कर्म करना चाहिए।

6.निष्काम कर्म: फल की इच्छा से मुक्त कर्म।

"जो व्यक्ति अपने कार्यों का फल त्यागकर काम करता है, वह वास्तव में योगी है।"

यह उद्धरण हमें निष्काम कर्म का महत्व सिखाता है। जब हम फल की चिंता किए बिना केवल अपने कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तब हम सच्चे योगी बनते हैं। यह जीवन की सबसे महत्वपूर्ण शिक्षाओं में से एक है, जो हमें भगवान श्रीकृष्ण से मिली है।

7.आत्मा अजर, अमर और अविनाशी है।

"न जायते म्रियते वा कदाचित् नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।"

इस श्लोक में भगवान कृष्ण आत्मा की अमरता की शिक्षा दे रहे हैं। आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है, वह शाश्वत है। इस सत्य को जानकर व्यक्ति मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है और जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम हो जाता है।

8.सच्ची भक्ति से सभी दुखों का अंत होता है।

"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।"

श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति अनन्य भाव से मुझमें भक्ति करता है, मैं उसकी हर कठिनाई का अंत करता हूं। यह उद्धरण हमें भगवान के प्रति समर्पण और भक्ति के महत्व को सिखाता है।

9.स्वयं को पहचानो: आत्म-ज्ञान का महत्व।

"ज्ञानी व्यक्ति वही है जो स्वयं को जानता है।"

भगवद गीता में आत्म-ज्ञान का महत्त्व बार-बार बताया गया है। यह उद्धरण बताता है कि जो व्यक्ति स्वयं को जानता है, वही इस संसार के असली सत्य को समझ सकता है। आत्मा को जानकर व्यक्ति मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।

10.माया का बंधन और उससे मुक्ति।

"मायाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम्।"

इस उद्धरण में भगवान श्रीकृष्ण हमें माया के बंधन से मुक्त होने की शिक्षा दे रहे हैं। संसार के सारे कर्म माया के अधीन होते हैं, और जब तक हम इस माया के बंधन में रहते हैं, हम सच्ची शांति और मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकते।

11.धैर्य और सहनशीलता का महत्व।

"सुख-दुःख समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।"

गीता हमें सिखाती है कि जीवन में धैर्य और सहनशीलता सबसे महत्वपूर्ण गुण हैं। हमें हर परिस्थिति में समान भाव बनाए रखना चाहिए, चाहे वह सुख हो या दुख, सफलता हो या असफलता।

12.ध्यान से मानसिक शांति प्राप्त होती है।

"ध्यान से मन की शांति मिलती है, और शांति से मन में स्थिरता आती है।"

यह उद्धरण ध्यान के महत्व को बताता है। ध्यान मन को शांति प्रदान करता है, जो जीवन के हर पहलू में स्थिरता और संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।

13.क्रोध से विनाश होता है।

"क्रोध से भ्रम उत्पन्न होता है, भ्रम से बुद्धि भ्रष्ट होती है, और बुद्धि के भ्रष्ट होने से व्यक्ति का पतन हो जाता है।"

क्रोध व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। भगवद गीता का यह उद्धरण हमें यह सिखाता है कि क्रोध से कैसे बचना चाहिए, क्योंकि क्रोध केवल विनाश की ओर ले जाता है।

14.सच्चे ज्ञान से मोक्ष प्राप्त होता है।

"ज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति होती है, क्योंकि ज्ञान ही सबकुछ है।"

भगवद गीता में ज्ञान का महत्त्व बहुत बार बताया गया है। ज्ञान के माध्यम से ही व्यक्ति अपने जीवन का सही मार्ग देख सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

15.अपने धर्म का पालन करना सबसे बड़ा कर्तव्य है।

"अपने धर्म का पालन करते हुए मृत्यु भी महान है।"

भगवद गीता में श्रीकृष्ण बार-बार बताते हैं कि अपने धर्म और कर्तव्यों का पालन करना सबसे महत्वपूर्ण है। चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, हमें अपने धर्म के मार्ग पर चलते रहना चाहिए।

16.सभी प्राणियों में एक ही आत्मा का निवास है।

"समस्त प्राणियों में मैं ही निवास करता हूँ।"

इस उद्धरण में श्रीकृष्ण यह बता रहे हैं कि सभी प्राणियों में एक ही आत्मा का निवास है। यह आत्मा भगवान का ही एक अंश है, जो हर जीवित प्राणी में समान रूप से विद्यमान है।

17.तपस्या का महत्व।

"तपस्या से आत्मा की शुद्धि होती है।"

तपस्या जीवन में अनुशासन और आत्म-संयम का प्रतीक है। तपस्या के माध्यम से व्यक्ति अपने भीतर के बुरे गुणों से मुक्त होकर आत्मा की शुद्धि कर सकता है।

18.प्रकृति के नियमों का पालन करें।

"प्रकृति के नियमों के अनुसार कार्य करना ही धर्म है।"

गीता में बार-बार यह शिक्षा दी गई है कि हमें प्रकृति के नियमों का पालन करना चाहिए।

19.मनुष्य को अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए।

"इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।"

यह उद्धरण हमें सिखाता है कि इंद्रियों पर नियंत्रण रखना जरूरी है। इंद्रियां हमें बाहरी दुनिया से जोड़ती हैं, और यदि उनका सही दिशा में उपयोग न किया जाए, तो वे मनुष्य को गलत मार्ग पर ले जा सकती हैं। अतः व्यक्ति को अपने मन और इंद्रियों पर नियंत्रण कर सही दिशा में कार्य करना चाहिए।

20.संसार के बंधनों से मुक्ति।

"मुक्त-संगः अनहंवादी, धृत्युत्साहसमन्वितः।"

यह उद्धरण हमें सिखाता है कि संसार के बंधनों से मुक्त रहना चाहिए। हमें अपने कर्तव्यों को करने के बाद, संसार के मोह-माया से दूर रहकर आत्म-संतोष प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।

21.आत्म-नियंत्रण से ज्ञान की प्राप्ति।

"जो आत्म-नियंत्रण करता है, वह ज्ञान को प्राप्त करता है।"

गीता हमें यह शिक्षा देती है कि आत्म-नियंत्रण और धैर्य के माध्यम से हम सच्चा ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। जब हम अपनी इंद्रियों और मन को नियंत्रित करते हैं, तब ही हमें सच्चाई का बोध होता है।

22.मोह से बचने की शिक्षा।

"मोह से व्यक्ति के ज्ञान का नाश होता है।"

श्रीकृष्ण बताते हैं कि मोह व्यक्ति के ज्ञान और विवेक को नष्ट कर देता है। जब हम किसी चीज़ से अत्यधिक लगाव रखते हैं, तो हम अपनी बुद्धि और सही निर्णय लेने की क्षमता खो देते हैं। इसलिए मोह से बचकर विवेक का पालन करना आवश्यक है।

23.धर्म के मार्ग पर चलने से सच्चा सुख मिलता है।

"जो व्यक्ति धर्म का पालन करता है, उसे सच्चा सुख और शांति प्राप्त होती है।"

यह उद्धरण हमें यह बताता है कि जीवन में सच्चा सुख और शांति केवल धर्म के मार्ग पर चलने से ही मिल सकता है। धर्म के सिद्धांतों का पालन करके ही हम अपने जीवन को सही दिशा में ले जा सकते हैं।

24.भक्ति का मार्ग सबसे सरल है।

"जो व्यक्ति भक्ति करता है, उसे भगवान के साक्षात्कार का अनुभव होता है।"

भगवद गीता में भक्ति के महत्व पर विशेष बल दिया गया है। भक्ति का मार्ग सभी के लिए खुला है, और यह सबसे सरल मार्ग है जो हमें ईश्वर के करीब ले जाता है।

25.सभी प्राणी भगवान के अंश हैं।

"ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।"

इस उद्धरण में श्रीकृष्ण यह सिखाते हैं कि सभी जीव भगवान का ही अंश हैं। प्रत्येक जीव में भगवान का अंश विद्यमान है, और इसे समझकर ही हम सभी प्राणियों के प्रति करुणा और दया का भाव रख सकते हैं।

26.सच्चा योग: मन और आत्मा का मिलन।

"योग आत्मा का मन से मिलन है।"

गीता के अनुसार, सच्चा योग वह है, जब मनुष्य अपने मन और आत्मा के बीच सामंजस्य स्थापित कर लेता है। योग केवल शारीरिक आसनों तक सीमित नहीं है, यह मानसिक और आत्मिक शांति का भी प्रतीक है।

27.संसार में हर चीज़ अस्थायी है।

"संसार की हर वस्तु अस्थायी है, केवल आत्मा ही शाश्वत है।"

भगवद गीता हमें यह सिखाती है कि संसार की हर वस्तु, चाहे वह भौतिक हो या मानसिक, अस्थायी है। केवल आत्मा ही शाश्वत और अविनाशी है, और इसे पहचानकर हमें संसार के मोह-माया से मुक्त होना चाहिए।

28.कर्म का फल ईश्वर के हाथ में है।

"जो व्यक्ति अपने कर्मों का फल ईश्वर पर छोड़ देता है, वह सच्चा योगी है।"

श्रीकृष्ण हमें सिखाते हैं कि अपने कर्मों का फल भगवान पर छोड़ देना ही सच्चा योग है। हमें सिर्फ अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, और उनके परिणाम के बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए।

29.अहंकार से मुक्ति।

"जो व्यक्ति अहंकार से मुक्त हो जाता है, वह सच्ची शांति प्राप्त करता है।"

गीता में बार-बार यह शिक्षा दी गई है कि अहंकार मनुष्य के विनाश का कारण बनता है। हमें अपने अहंकार को त्यागकर विनम्रता के साथ जीवन जीना चाहिए, तभी हम सच्ची शांति और सुख का अनुभव कर सकते हैं।

30.सभी कर्म ईश्वर को समर्पित करें।

"सभी कार्यों को भगवान के चरणों में समर्पित करें।"

श्रीकृष्ण हमें यह शिक्षा देते हैं कि जीवन में किए गए हर कार्य को भगवान को समर्पित करना चाहिए। इससे हमें अपनी आत्मा की शुद्धि होती है और हम अहंकार और मोह से मुक्त हो जाते हैं।

31.निर्मल मन से ही भक्ति संभव है।

"केवल शुद्ध और निर्मल मन से ही भगवान की भक्ति की जा सकती है।"

भगवद गीता में भक्ति का महत्त्व कई बार बताया गया है। केवल वह व्यक्ति जो निर्मल और शुद्ध मन से भगवान की भक्ति करता है, उसे सच्ची आध्यात्मिक अनुभूति प्राप्त होती है।

32.जीवन एक युद्धभूमि है।

"जीवन एक युद्धभूमि है, और हमें हर परिस्थिति में लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए।"

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन के संघर्षों से भागने के बजाय उनका सामना करने की शिक्षा दी। गीता के इस उद्धरण से हमें यह सिखने को मिलता है कि जीवन में आने वाली हर चुनौती का डटकर सामना करना चाहिए।

33.भगवान सबके हृदय में निवास करते हैं।

"ईश्वर सभी के हृदय में निवास करते हैं।"

इस उद्धरण में श्रीकृष्ण कहते हैं कि भगवान हर प्राणी के हृदय में निवास करते हैं। इससे यह समझ में आता है कि भगवान सर्वव्यापी हैं और हमें हर प्राणी में उनका अंश देखना चाहिए।

34.नकारात्मक विचारों को त्यागें।

"नकारात्मक विचार व्यक्ति के विकास में बाधक होते हैं।"

श्रीकृष्ण हमें यह सिखाते हैं कि जीवन में नकारात्मक विचारों को त्यागना जरूरी है। नकारात्मकता से हमारा आत्म-विश्वास और मानसिक शांति प्रभावित होती है, इसलिए हमें हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

35.सभी जीवों के प्रति दया और करुणा रखें।

"जो व्यक्ति सभी प्राणियों के प्रति करुणा और दया रखता है, वह सच्चा भक्त है।"

यह उद्धरण हमें बताता है कि सच्ची भक्ति वह है, जब हम सभी प्राणियों के प्रति करुणा और दया का भाव रखते हैं। यह प्रेम और करुणा की भावना हमें भगवान के और करीब लाती है।

36.संसार के मोह-माया से दूर रहें।

"जो व्यक्ति संसार के मोह-माया से मुक्त हो जाता है, वह मोक्ष प्राप्त करता है।"

भगवद गीता हमें यह सिखाती है कि संसार की मोह-माया हमें अपने वास्तविक उद्देश्य से दूर करती है। जब हम इनसे मुक्त हो जाते हैं, तब ही हम सच्चे आनंद और शांति को प्राप्त कर सकते हैं।

37.साधक को हमेशा संतुलित रहना चाहिए।

"साधक को हर परिस्थिति में संतुलन बनाए रखना चाहिए।"

गीता का यह संदेश हमें सिखाता है कि जीवन में चाहे कोई भी परिस्थिति हो, हमें अपने मन और भावनाओं को संतुलित रखना चाहिए। यही सच्ची साधना का मार्ग है।

38.कर्म ही पूजा है।

"कर्म करना ही सच्ची पूजा है।"

भगवद गीता में कर्म का महत्त्व सबसे ज्यादा बताया गया है। कर्म ही मनुष्य का धर्म है, और इसे ईमानदारी और निस्वार्थ भाव से करना ही भगवान की सच्ची पूजा है।

39.आत्म-ज्ञान से संसार की सभी बाधाओं को पार किया जा सकता है।

"जो व्यक्ति आत्म-ज्ञान प्राप्त करता है, वह संसार की सभी बाधाओं को पार कर सकता है।"

श्रीकृष्ण कहते हैं कि आत्म-ज्ञान ही वह शक्ति है जो हमें संसार के हर दुख और कठिनाई से पार कर सकता है। आत्म-ज्ञान से हम जीवन के हर पहलू को समझ सकते हैं और सही मार्ग पर चल सकते हैं।

40.ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण।

"जो व्यक्ति पूर्ण रूप से ईश्वर के प्रति समर्पित होता है, उसे हर कठिनाई से मुक्ति मिलती है।"

गीता में बार-बार यह शिक्षा दी गई है कि जो व्यक्ति अपना हर कार्य और जीवन भगवान के चरणों में समर्पित करता है, उसे सभी कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है।

41.सच्चा ज्ञान वही है, जो हर प्राणी में ईश्वर को देखे।

"सच्चा ज्ञानी वह है, जो सभी प्राणियों में भगवान का दर्शन करता है।"

गीता का यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि सच्चा ज्ञान वही है, जो प्रत्येक जीव में भगवान का अंश देखता है। इससे हम जीवन के हर प्राणी के प्रति करुणा और प्रेम का भाव रख सकते हैं।

42.सभी सुख-दुख एक समान हैं।

"जो व्यक्ति सुख-दुख में समान भाव रखता है, वही सच्चा योगी है।"

यह उद्धरण हमें सिखाता है कि सच्ची साधना वह है जिसमें व्यक्ति सुख और दुख, लाभ और हानि, जीत और हार, सभी में समान दृष्टि रखता है। ऐसा व्यक्ति जीवन के उतार-चढ़ाव से विचलित नहीं होता और सच्चे संतुलन की प्राप्ति करता है।

43.अहिंसा ही सच्ची भक्ति है।

"अहिंसा परम धर्म है।"

गीता के इस उद्धरण में अहिंसा का महत्त्व बताया गया है। अहिंसा केवल शारीरिक हिंसा से बचने का नाम नहीं है, बल्कि मन, वचन, और कर्म से किसी को हानि न पहुँचाना ही सच्ची भक्ति है। यह उद्धरण हमें प्रेम और करुणा का संदेश देता है।

44.ज्ञान से मोह का नाश होता है।

"ज्ञान से अज्ञान का अंधकार मिटता है।"

श्रीकृष्ण हमें यह सिखाते हैं कि सच्चे ज्ञान से ही अज्ञान और मोह का अंत होता है। जब व्यक्ति अपने जीवन में ज्ञान का दीपक जलाता है, तब ही वह सच्चे मार्ग पर चल पाता है और मोक्ष की प्राप्ति करता है।

45.प्रकृति के साथ तालमेल रखें।

"प्रकृति के नियमों का पालन करें, क्योंकि वही सच्चा धर्म है।"

भगवद गीता हमें सिखाती है कि हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखना चाहिए। प्रकृति के नियमों का पालन करना और उसके साथ संतुलित जीवन जीना ही सच्चे धर्म का पालन है।

46.प्रेम और करुणा से ही संसार का कल्याण होता है।

"जो व्यक्ति प्रेम और करुणा का मार्ग अपनाता है, वह भगवान के सबसे करीब होता है।"

श्रीकृष्ण बताते हैं कि संसार में प्रेम और करुणा ही वह शक्ति है, जिससे सच्चा सुख और शांति प्राप्त होती है। जो व्यक्ति सभी प्राणियों के प्रति प्रेम और दया का भाव रखता है, वही सच्ची भक्ति करता है।

47.सच्चा भक्त वह है जो हर परिस्थिति में संतुष्ट रहता है।

"संतुष्टि ही सच्ची भक्ति का प्रतीक है।"

गीता हमें यह सिखाती है कि सच्चा भक्त वह है, जो हर परिस्थिति में संतुष्ट रहता है। चाहे जीवन में कितनी भी कठिनाई क्यों न हो, जो व्यक्ति संतुष्ट और धैर्यवान रहता है, वही सच्चे अर्थों में भक्त कहलाता है।

48.इंद्रियों का नियंत्रण ही सच्चा योग है।

"इंद्रियों को वश में करना ही योग की उच्च अवस्था है।"

भगवद गीता के इस उद्धरण में योग की परिभाषा दी गई है। योग केवल शारीरिक व्यायाम तक सीमित नहीं है, बल्कि इंद्रियों और मन का नियंत्रण भी योग का एक महत्वपूर्ण पहलू है। जब व्यक्ति अपनी इंद्रियों को वश में कर लेता है, तभी वह सच्चा योगी बनता है।

49.भगवान को सभी कर्मों का फल समर्पित करें।

"जो व्यक्ति अपने सभी कर्म भगवान को समर्पित करता है, वह फल की चिंता से मुक्त हो जाता है।"

श्रीकृष्ण बताते हैं कि जीवन में किए गए सभी कार्यों का फल भगवान को समर्पित कर देना चाहिए। इससे हम अपने कार्यों के परिणाम की चिंता से मुक्त हो जाते हैं और शांति प्राप्त करते हैं।

50.मृत्यु केवल शरीर की होती है, आत्मा अमर है।

"आत्मा अजर-अमर है, केवल शरीर का नाश होता है।"

यह उद्धरण हमें मृत्यु के सत्य को समझाता है। श्रीकृष्ण हमें सिखाते हैं कि आत्मा कभी नष्ट नहीं होती, केवल शरीर का नाश होता है। इस सत्य को जानकर हमें मृत्यु के भय से मुक्त होना चाहिए।

51.समर्पण में ही मुक्ति है।

"भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण ही मोक्ष का मार्ग है।"

गीता में बार-बार यह शिक्षा दी गई है कि भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण ही मोक्ष का रास्ता है। जब हम अपने सभी कार्य, इच्छाएं और फल भगवान को समर्पित कर देते हैं, तब हमें सच्ची मुक्ति प्राप्त होती है।

52.संसार का प्रत्येक कण भगवान का अंश है।

"समस्त ब्रह्मांड भगवान की महिमा का विस्तार है।"

गीता के इस उद्धरण में बताया गया है कि संसार का प्रत्येक कण भगवान का अंश है। इससे हमें यह सीख मिलती है कि हमें हर जीव और वस्तु में भगवान का दर्शन करना चाहिए और सभी का सम्मान करना चाहिए।

53.आध्यात्मिक विकास के लिए एकाग्रता आवश्यक है।

"जो व्यक्ति एकाग्रता के साथ साधना करता है, वह अध्यात्म के मार्ग पर तेजी से अग्रसर होता है।"

भगवद गीता में श्रीकृष्ण ने एकाग्रता को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बताया है। जब हम अपने मन और आत्मा को एकाग्र कर साधना करते हैं, तब ही हमें सच्चे ज्ञान और आध्यात्मिक विकास की प्राप्ति होती है।

54.मोह और लालच से बचें।

"मोह और लालच से व्यक्ति अपने सत्य मार्ग से भटक जाता है।"

यह उद्धरण हमें यह सिखाता है कि मोह और लालच जीवन में अज्ञानता और दुख का कारण होते हैं। इनसे बचकर ही हम अपने कर्तव्यों का पालन कर सकते हैं और सच्ची शांति प्राप्त कर सकते हैं।

55.सत्संग का महत्त्व।

"सत्संग से व्यक्ति की आत्मा शुद्ध होती है।"

गीता में बताया गया है कि सत्संग, यानी सज्जनों और ज्ञानी व्यक्तियों की संगति, आत्मा की शुद्धि और विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। सत्संग से हम सच्चे ज्ञान की ओर अग्रसर होते हैं।

56.किसी भी परिस्थिति में धर्म का त्याग न करें।

"धर्म का पालन करना ही जीवन का उद्देश्य है।"

श्रीकृष्ण कहते हैं कि चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, व्यक्ति को कभी भी धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए। धर्म का पालन करते हुए जीवन जीना ही सबसे श्रेष्ठ कार्य है।

57.हर कार्य में भगवान का ध्यान रखें।

"अपने हर कार्य में भगवान का स्मरण करो, और उसे समर्पित करो।"

यह उद्धरण हमें सिखाता है कि जीवन में किए गए हर कार्य में भगवान का स्मरण करना चाहिए। इससे हमारे कार्य शुद्ध और निष्कलंक होते हैं, और हमें मानसिक शांति प्राप्त होती है।

58.परिश्रम से सफलता मिलती है।

"सच्चे परिश्रम और निष्ठा से किए गए कार्य कभी निष्फल नहीं होते।"

गीता में कर्म और परिश्रम का विशेष महत्त्व बताया गया है। जब हम सच्चे मन से मेहनत करते हैं, तो उसका परिणाम भी अवश्य सकारात्मक होता है। सफलता उन्हीं को मिलती है, जो अपने कार्य में पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ लगे रहते हैं।

59.धैर्यवान व्यक्ति सच्चा ज्ञानी है।

"धैर्य और संयम रखने वाला व्यक्ति सच्चा ज्ञानी होता है।"

श्रीकृष्ण हमें बताते हैं कि धैर्य और संयम का गुण ज्ञान और सफलता की कुंजी है। जो व्यक्ति हर परिस्थिति में धैर्य बनाए रखता है, वह सच्ची सफलता और शांति को प्राप्त करता है।

60.संसार में किसी से द्वेष न करें।

"जो व्यक्ति किसी से द्वेष नहीं करता, वही सच्चा भक्त है।"

गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि सच्चा भक्त वह है, जो किसी से भी द्वेष नहीं करता। हमें सभी के प्रति प्रेम और करुणा का भाव रखना चाहिए, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो।

61.प्रेम और विश्वास भगवान के प्रति समर्पण का आधार है।

"भगवान के प्रति प्रेम और विश्वास से ही सच्चा समर्पण होता है।"

यह उद्धरण हमें यह सिखाता है कि प्रेम और विश्वास ही भगवान के प्रति सच्चे समर्पण का आधार है। जब हम भगवान के प्रति पूर्ण प्रेम और विश्वास रखते हैं, तभी हमें सच्चे आनंद की प्राप्ति होती है।

62.सभी कर्मों का मूल कारण इच्छा है।

"इच्छा ही कर्म का मूल कारण है।"

श्रीकृष्ण बताते हैं कि हमारी हर क्रिया के पीछे इच्छा होती है। यदि हम अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करें, तो हम अपने कर्मों को भी सही दिशा में ले जा सकते हैं।

63.मन की शुद्धि सबसे महत्त्वपूर्ण है।

"मन की शुद्धि से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।"

भगवद गीता के इस उद्धरण में श्रीकृष्ण हमें सिखाते हैं कि मोक्ष या आत्मिक मुक्ति की प्राप्ति के लिए मन की शुद्धि अत्यंत आवश्यक है। मन जब शुद्ध होता है, तब व्यक्ति मोह, द्वेष और अहंकार से मुक्त हो जाता है और उसे सच्चे आत्मज्ञान का अनुभव होता है।

64.कर्तव्य का पालन ही धर्म है।

"अपने कर्तव्यों का पालन करना ही धर्म का पालन है।"

गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उनके कर्तव्यों का पालन करने की प्रेरणा दी। प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य उसके धर्म के अनुसार होता है, और उसका पालन निस्वार्थ भाव से करना ही धर्म है। जब हम अपने कर्तव्यों को धर्म समझकर निभाते हैं, तब ही हम सच्ची शांति और सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

65.दया और करुणा से संसार को जीता जा सकता है।

"जो व्यक्ति दया और करुणा का आचरण करता है, वह सच्चा विजेता है।"

श्रीकृष्ण बताते हैं कि दया और करुणा मानवता के सबसे बड़े गुण हैं। यह केवल शारीरिक युद्धों में जीत का नहीं, बल्कि आंतरिक और आध्यात्मिक शांति का प्रतीक है। जब व्यक्ति अपने व्यवहार में दया और करुणा को अपनाता है, तब ही वह सच्चे अर्थों में विजयी होता है।

66.संसार की दौलत से आत्म-संतोष नहीं मिलता।

"संसार की दौलत अस्थायी है, आत्म-संतोष ही सच्ची संपत्ति है।"

यह उद्धरण हमें सिखाता है कि संसार की दौलत और ऐश्वर्य अस्थायी होते हैं। असली संपत्ति वह है, जो आत्म-संतोष और आंतरिक शांति प्रदान करती है। व्यक्ति चाहे कितना भी धन-संपत्ति अर्जित कर ले, यदि उसके पास आत्म-संतोष नहीं है, तो वह कभी भी वास्तविक सुख और शांति का अनुभव नहीं कर सकता।

67.सच्चा साधक अहंकार से मुक्त होता है।

"जो साधक अहंकार से मुक्त होता है, वही सच्ची साधना करता है।"

भगवद गीता में बार-बार अहंकार को त्यागने की शिक्षा दी गई है। जो व्यक्ति अहंकार से मुक्त हो जाता है, वही सच्चा साधक कहलाता है। अहंकार व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में सबसे बड़ी बाधा है, और जब व्यक्ति इसे त्याग देता है, तब वह ईश्वर की कृपा का अनुभव कर पाता है।

68.धर्म का मार्ग कठिन होता है, परंतु सच्चा है।

"धर्म का मार्ग कठिन है, लेकिन वही सच्चे आनंद की ओर ले जाता है।"

गीता में धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी गई है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि यह मार्ग आसान नहीं होता, लेकिन यही वह मार्ग है जो व्यक्ति को सच्चे सुख और मोक्ष की ओर ले जाता है। जीवन में कठिनाइयों का सामना करते हुए भी जो व्यक्ति धर्म का पालन करता है, उसे अंततः सच्ची शांति और सफलता प्राप्त होती है।

69.कर्मफल की चिंता मत करो।

"कर्म किए जा, फल की चिंता मत कर।"

यह भगवद गीता का सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली उद्धरण है। श्रीकृष्ण हमें सिखाते हैं कि हमें केवल अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए, न कि उसके परिणाम की चिंता करनी चाहिए। जब हम निस्वार्थ भाव से कर्म करते हैं और फल की अपेक्षा नहीं रखते, तब हम सच्चे योगी बनते हैं और जीवन में शांति और संतुलन प्राप्त करते हैं।

70.ईश्वर सर्वज्ञ हैं, और हमें उन पर विश्वास रखना चाहिए।

"भगवान सर्वव्यापी और सर्वज्ञ हैं। उन पर विश्वास रखो।"

यह उद्धरण हमें सिखाता है कि ईश्वर हर जगह हैं और वह हर चीज़ को जानते हैं। जब हम उन पर अटूट विश्वास रखते हैं, तब ही हमें जीवन की सभी कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति मिलती है। ईश्वर पर विश्वास ही हमें आंतरिक शक्ति और शांति प्रदान करता है।

71.प्रत्येक व्यक्ति के भीतर ईश्वर का निवास है।

"ईश्वर हर प्राणी के भीतर हैं, इसे समझो और सभी से प्रेम करो।"

गीता का यह श्लोक हमें सिखाता है कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर ईश्वर का निवास है। जब हम इस सत्य को समझते हैं, तब हमें हर प्राणी के प्रति प्रेम, करुणा और सम्मान का भाव रखना चाहिए। यही सच्चे धर्म और अध्यात्म की पहचान है।

72.जीवन में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।

"जीवन में हर चीज़ में संतुलन रखना ही सच्ची साधना है।"

श्रीकृष्ण हमें सिखाते हैं कि जीवन में संतुलन बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। चाहे वह सुख-दुख हो, सफलता-असफलता, हमें हर परिस्थिति में मानसिक और भावनात्मक संतुलन बनाए रखना चाहिए। यही सच्चे योग और साधना का मार्ग है।

73.सच्चा भक्त वही है, जो निस्वार्थ भाव से भक्ति करता है।

"जो व्यक्ति बिना किसी अपेक्षा के भगवान की भक्ति करता है, वही सच्चा भक्त है।"

यह उद्धरण हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति वही है, जो निस्वार्थ भाव से की जाती है। जब हम किसी फल या पुरस्कार की अपेक्षा के बिना भगवान की भक्ति करते हैं, तब हमें सच्ची आध्यात्मिक अनुभूति होती है और हम भगवान के करीब पहुंचते हैं।

74.ध्यान और साधना से मन को नियंत्रित किया जा सकता है।

"ध्यान और साधना से ही मन को शांत और नियंत्रित किया जा सकता है।"

भगवद गीता में ध्यान और साधना के महत्त्व को विशेष रूप से बताया गया है। जब हम नियमित रूप से ध्यान और साधना करते हैं, तब हमारा मन शांत होता है और हम अपने विचारों और इंद्रियों को नियंत्रित कर सकते हैं। इससे हमें आंतरिक शांति और आत्म-संतोष की प्राप्ति होती है।

75.धर्म के बिना जीवन अधूरा है।

"धर्म के बिना जीवन एक सागर के बिना नाव की तरह है।"

गीता हमें सिखाती है कि धर्म के बिना जीवन अधूरा और दिशाहीन होता है। धर्म हमें सही और गलत का ज्ञान देता है और हमें जीवन के कठिन समय में मार्गदर्शन प्रदान करता है। धर्म के आधार पर ही हम अपने जीवन को सही दिशा में ले जा सकते हैं।

76.प्रत्येक व्यक्ति का कर्म उसके भविष्य का निर्धारण करता है

"जो जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल पाता है।"

गीता के इस उद्धरण में कर्म के सिद्धांत की महत्ता बताई गई है। हमारे कर्म ही हमारे भविष्य का निर्माण करते हैं। यदि हम अच्छे और धर्मसंगत कर्म करते हैं, तो हमें उसका अच्छा परिणाम मिलता है, और यदि हम बुरे कर्म करते हैं, तो उसका फल भी हमें भुगतना पड़ता है।

77.सच्चा सुख आंतरिक शांति में है।

"सच्चा सुख भौतिक वस्तुओं में नहीं, आंतरिक शांति में है।"

श्रीकृष्ण हमें बताते हैं कि सच्चा सुख बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि हमारे आंतरिक शांति और संतोष में है। जब हम अपने भीतर शांति और संतोष का अनुभव करते हैं, तब हमें बाहरी दुनिया की वस्तुओं की लालसा नहीं रहती और हम सच्चा सुख प्राप्त करते हैं।

78.मोह और अज्ञान से मनुष्य का पतन होता है।

"मोह और अज्ञान व्यक्ति के पतन का कारण होते हैं।"

गीता में श्रीकृष्ण मोह और अज्ञान को मनुष्य के पतन का सबसे बड़ा कारण बताते हैं। जब हम मोह और अज्ञान के प्रभाव में होते हैं, तो हम सही और गलत का निर्णय नहीं कर पाते और गलत मार्ग पर चल पड़ते हैं। इसलिए हमें इनसे बचना चाहिए और सच्चे ज्ञान का अनुसरण करना चाहिए।

79.संयम और साधना से आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति होती है।

"संयम और साधना से ही आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति होती है।"

भगवद गीता हमें यह सिखाती है कि आत्म-साक्षात्कार, यानी अपने असली स्वरूप को जानना, केवल संयम और साधना से ही संभव है। जब व्यक्ति अपने मन और इंद्रियों को संयमित करता है और नियमित रूप से साधना करता है, तभी वह अपने भीतर के सत्य को जान सकता है।

80.सच्चा योगी वही है, जो संसार के मोह से मुक्त हो।

"सच्चा योगी वही है, जो संसार के मोह से ऊपर उठकर साधना करता है।"

गीता में योगी की परिभाषा दी गई है। सच्चा योगी वह है, जो संसार के मोह-माया से मुक्त होकर अपनी साधना करता है। वह किसी भी भौतिक वस्तु या सुख-दुख में नहीं फंसता और हर परिस्थिति में संतुलित रहता है।

81.क्षमा से व्यक्ति महान बनता है।

"क्षमा सबसे बड़ा गुण है, जो व्यक्ति को महान बनाता है।"

यह उद्धरण हमें क्षमा के महत्त्व को समझाता है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि क्षमा एक ऐसा गुण है, जिससे व्यक्ति महानता की ओर बढ़ता है। जो व्यक्ति दूसरों की गलतियों को क्षमा कर देता है, वह न केवल अपने मन को शांति प्रदान करता है, बल्कि ईश्वर के और करीब पहुंचता है।

82.इंद्रियों का नियंत्रण ही सच्ची विजय है।

"जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों को नियंत्रित कर लेता है, वही सच्चा विजेता होता है।"

गीता में इंद्रियों पर नियंत्रण को सबसे बड़ी विजय बताया गया है। जब हम अपनी इंद्रियों और इच्छाओं को नियंत्रित करते हैं, तब हम सच्ची आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ते हैं। इंद्रियों का संयम ही हमें आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की ओर ले जाता है।

83.धर्म की रक्षा के लिए ही भगवान अवतार लेते हैं।

"जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब मैं अवतार लेता हूं।"

यह उद्धरण गीता का एक प्रसिद्ध श्लोक है, जिसमें श्रीकृष्ण बताते हैं कि जब भी संसार में अधर्म और अन्याय बढ़ता है, तब भगवान धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करने के लिए अवतार लेते हैं। यह उद्धरण हमें धर्म के प्रति जागरूक रहने की प्रेरणा देता है।

84.प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर जीवन जीना चाहिए।

"जो व्यक्ति प्रकृति के नियमों के अनुसार जीवन जीता है, वह सच्ची शांति पाता है।"

गीता हमें सिखाती है कि हमें प्रकृति के नियमों के साथ तालमेल बनाकर चलना चाहिए। जब हम प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहते हैं, तो हमें जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त होती है। हमें अपने पर्यावरण का सम्मान करना चाहिए और उसका सही तरीके से उपयोग करना चाहिए।

85.सत्य और अहिंसा जीवन के प्रमुख स्तंभ हैं।

"सत्य और अहिंसा ही सच्ची साधना के मार्ग हैं।"

गीता में श्रीकृष्ण हमें सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। यह दोनों जीवन के सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं, जो हमें सही दिशा में चलने और सच्चे अर्थों में आध्यात्मिक उन्नति करने में मदद करते हैं।

86.भगवान को किसी विशेष वस्तु की आवश्यकता नहीं होती।

"भगवान केवल सच्चे प्रेम और श्रद्धा को स्वीकार करते हैं।"

श्रीकृष्ण बताते हैं कि भगवान को किसी भौतिक वस्तु की आवश्यकता नहीं होती। वह केवल हमारे सच्चे प्रेम, भक्ति और श्रद्धा को ही स्वीकार करते हैं। यह उद्धरण हमें यह सिखाता है कि भक्ति में किसी बाहरी वस्त्र, आभूषण, या धन-संपत्ति की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि हमारे हृदय की शुद्धता ही भगवान को प्रिय है।

87.ज्ञान ही सच्ची संपत्ति है।

"ज्ञान से बढ़कर कोई संपत्ति नहीं है।"

गीता में श्रीकृष्ण बताते हैं कि संसार की सबसे बड़ी संपत्ति ज्ञान है। भौतिक संपत्ति नष्ट हो सकती है, लेकिन सच्चा ज्ञान अमर होता है और वह व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्रदान करता है। ज्ञान ही हमें सच्चे मार्ग पर चलने की शक्ति देता है।

88.संसार के मोह से मुक्त होकर ही सच्ची भक्ति संभव है।

"संसार के मोह से ऊपर उठकर ही सच्चा भक्त बना जा सकता है।"

गीता हमें यह सिखाती है कि जब तक हम संसार के भौतिक सुखों और इच्छाओं में फंसे रहते हैं, तब तक हम सच्चे भक्त नहीं बन सकते। हमें इन मोह-माया से ऊपर उठकर भगवान की भक्ति में लीन होना चाहिए, तभी हमें सच्चे आनंद और शांति की प्राप्ति होती है।

89.धर्म की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहें।

"धर्म की रक्षा करना ही सबसे बड़ा कर्तव्य है।"

गीता में धर्म का पालन करने पर जोर दिया गया है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि हमें सदैव धर्म की रक्षा के लिए तत्पर रहना चाहिए, चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों। धर्म का पालन ही जीवन का सबसे बड़ा कर्तव्य है, और यही हमें मोक्ष की ओर ले जाता है।

90.भगवान सबके भीतर हैं।

"भगवान हर व्यक्ति के भीतर विद्यमान हैं।"

यह उद्धरण हमें सिखाता है कि भगवान प्रत्येक व्यक्ति के भीतर निवास करते हैं। जब हम इस सत्य को समझते हैं, तो हम सभी से प्रेम और सम्मान का व्यवहार करते हैं और अपने भीतर के भगवान से जुड़ते हैं।

91.विचारों को शुद्ध रखो, वे ही कर्म बनते हैं।

"विचार ही कर्म का बीज होते हैं।"

गीता में श्रीकृष्ण हमें सिखाते हैं कि हमारे विचार ही हमारे कर्मों का आधार होते हैं। यदि हमारे विचार शुद्ध और सकारात्मक होते हैं, तो हमारे कर्म भी वैसे ही होते हैं। इसलिए हमें अपने विचारों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें शुद्ध रखना चाहिए।

92.ध्यान में ही सच्ची शक्ति है।

"ध्यान से व्यक्ति अपने भीतर की शक्ति को जागृत करता है।"

गीता में ध्यान का महत्त्व विशेष रूप से बताया गया है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपने भीतर की शक्ति को पहचान सकता है और उसे जागृत कर सकता है। ध्यान से हमें मानसिक शांति, आत्मिक संतुलन, और आंतरिक शक्ति प्राप्त होती है।

93.प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर का ही अंश है।

"हर व्यक्ति में भगवान का अंश होता है।"

गीता हमें यह सिखाती है कि प्रत्येक व्यक्ति में भगवान का अंश होता है। जब हम इस सत्य को समझते हैं, तो हम हर व्यक्ति के प्रति प्रेम, सम्मान और करुणा का भाव रखते हैं। इससे हमें जीवन में सच्ची शांति और आनंद प्राप्त होता है।

94.विनम्रता से सच्ची भक्ति की प्राप्ति होती है।

"विनम्रता सच्ची भक्ति और ज्ञान का प्रतीक है।"

भगवद गीता में श्रीकृष्ण विनम्रता को एक महान गुण बताते हैं। जब व्यक्ति अपने अहंकार को त्यागकर विनम्रता का आचरण करता है, तब वह सच्ची भक्ति और ज्ञान की प्राप्ति कर सकता है। विनम्रता से ही व्यक्ति अपने भीतर के ईश्वर को पहचानता है और आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर होता है।

95.जो व्यक्ति सत्य के मार्ग पर चलता है, उसे कभी हार का सामना नहीं करना पड़ता।

"सत्य का मार्ग कठिन है, लेकिन वह अंततः विजय की ओर ले जाता है।"

श्रीकृष्ण हमें सिखाते हैं कि सत्य का मार्ग आसान नहीं होता, लेकिन वह सदा विजय की ओर ले जाता है। जो व्यक्ति सत्य के मार्ग पर अडिग रहता है, वह जीवन की हर चुनौती का सामना कर सकता है और अंततः सच्ची सफलता प्राप्त करता है।

96.क्रोध विनाशक है।

"क्रोध से भ्रम उत्पन्न होता है और भ्रम से विनाश।"

गीता के इस उद्धरण में क्रोध को एक विनाशकारी शक्ति के रूप में वर्णित किया गया है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि क्रोध से विवेक का नाश होता है, जिससे व्यक्ति सही निर्णय लेने में असमर्थ हो जाता है और उसका पतन होता है। इसलिए हमें क्रोध पर नियंत्रण रखना सीखना चाहिए।

97."समर्पण से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।"

भगवद गीता हमें सिखाती है कि मोक्ष की प्राप्ति के लिए भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण आवश्यक है। जब हम अपने सभी कर्म और इच्छाओं को भगवान के चरणों में अर्पित करते हैं, तब हम इस संसार के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

98.आत्म-नियंत्रण से ही सच्चा सुख मिलता है।

"जो व्यक्ति आत्म-नियंत्रण करता है, वही सच्चा सुखी होता है।"

गीता में आत्म-नियंत्रण का महत्त्व बताया गया है। जब हम अपनी इंद्रियों और इच्छाओं को नियंत्रित करना सीख जाते हैं, तभी हमें सच्चे सुख और शांति की प्राप्त होती है। आत्म-नियंत्रण से व्यक्ति बाहरी दुनिया के मोह से मुक्त होकर आंतरिक शांति और आनंद प्राप्त कर सकता है।

99.हर व्यक्ति अपने कर्मों का भाग्य निर्माता है।

"प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों से अपना भाग्य बनाता है।"

श्रीकृष्ण बताते हैं कि हमारे कर्म ही हमारे भाग्य का निर्माण करते हैं। कोई भी व्यक्ति अपने भविष्य को बदल सकता है, यदि वह सही और धर्म के अनुसार कर्म करता है। यह उद्धरण हमें सिखाता है कि हमें अपने कर्मों के प्रति जागरूक और जिम्मेदार होना चाहिए।

100."मृत्यु के बाद भी आत्मा जीवित रहती है।"

गीता में आत्मा की अमरता के बारे में विस्तार से बताया गया है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि आत्मा का कभी नाश नहीं होता, केवल शरीर बदलता है। यह सत्य हमें मृत्यु के भय से मुक्त करता है और जीवन के प्रति एक नई दृष्टि प्रदान करता है।

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निष्कर्ष (Conclusion)

भगवद गीता के ये 100 उद्धरण जीवन के हर पहलू को छूते हैं, चाहे वह आत्म-ज्ञान हो, कर्मयोग हो, या भक्ति मार्ग। ये उद्धरण न केवल हमें सही दिशा में मार्गदर्शन करते हैं, बल्कि हमें यह भी सिखाते हैं कि जीवन की चुनौतियों का सामना किस प्रकार किया जाए। श्रीकृष्ण के उपदेश हमें यह सिखाते हैं कि सच्ची शांति और मोक्ष केवल धर्म, सत्य, और निस्वार्थ कर्म से ही प्राप्त किया जा सकता है।

जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, भगवद गीता के ये उपदेश हमें एक मजबूत और स्थिर मानसिकता विकसित करने में मदद करते हैं। हमें केवल अपने कर्मों पर ध्यान देना है और फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। जब हम अपने कर्मों को सही तरीके से करते हैं, तब ही हमें सफलता और शांति की प्राप्ति होती है।

गीता का संदेश सार्वभौमिक है और इसका महत्त्व युगों-युगों तक रहेगा। इसके उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने तब थे जब अर्जुन ने कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में श्रीकृष्ण से यह ज्ञान प्राप्त किया था। इन उद्धरणों को अपने जीवन में अपनाकर, हम अपने जीवन को अधिक अर्थपूर्ण और सशक्त बना सकते हैं।

आध्यात्मिक उन्नति के लिए गीता का अध्ययन और उसके सिद्धांतों का पालन आवश्यक है। श्रीकृष्ण ने जो ज्ञान अर्जुन को दिया था, वह हमें यह सिखाता है कि जीवन में चुनौतियों और परेशानियों का सामना कैसे करना चाहिए। इसलिए, हमें गीता के इन उपदेशों को अपने जीवन में आत्मसात करके, एक संतुलित और शांतिपूर्ण जीवन जीने की कोशिश करनी चाहिए।

भगवद गीता के ये उद्धरण न केवल प्रेरणादायक हैं, बल्कि हमें जीवन के हर मोड़ पर सही मार्गदर्शन भी प्रदान करते हैं। इन्हें अपने जीवन में शामिल करके, हम आत्म-साक्षात्कार, आंतरिक शांति, और मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।

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