140+ Shree Krishna quotes in hindi | श्री कृष्ण के सर्वश्रेष्ठ सुविचार, अनमोल वचन
140+ Shree Krishna quotes in hindi | श्री कृष्ण के सर्वश्रेष्ठ सुविचार, अनमोल वचन
श्रीकृष्ण भारतीय धर्म, संस्कृति और अध्यात्म के एक अमूल्य प्रतीक हैं। उनके उपदेशों और विचारों ने न केवल महाभारत के पात्रों को मार्गदर्शन दिया, बल्कि युगों-युगों से जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और जीने के लिए हमें भी प्रेरित किया है। श्रीकृष्ण के विचारों में सत्य, धर्म, कर्तव्य, प्रेम, भक्ति और जीवन के विभिन्न पहलुओं का अनूठा संगम मिलता है। श्रीमद्भगवद्गीता के उनके उपदेशों ने करोड़ों लोगों का जीवन बदला है। महाभारत में अर्जुन के अपने रिश्तेदारों से युद्ध न करने पर श्री कृष्ण द्वारा दिये गए गीता ज्ञान को ही श्रीमद्भगवद्गीता कहा जाता है. श्रीमद् भगवत् गीता एक ऐसा बुक है जिसमे जीवन से जुड़ी आपके सभी प्रश्नों के उत्तर इसमें मिल जाएगी. आज - भागवत गीता भारत नही पूरे विश्व में पढ़ी जाती है. इस बुक का कई भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है. श्रीमद् भगवत् गीता बुक भारत में बहुत पवित्र बुक मना जाता है.
यहाँ हम ऐसे प्रेरणादायक उद्धरण प्रस्तुत कर रहे हैं, जो आपके जीवन को भी एक नई दिशा देंगे।
श्रीमद् भगवत् गीता Full Video
संपूर्ण भगवद्गीता (हिन्दी में) Full Bhagavad Gita (In Hindi) | Chapters 1-18गीता उपदेश Videos
- गीता उपदेश - भाग 1
- गीता उपदेश - भाग 2
- गीता उपदेश - भाग 3
- गीता उपदेश - भाग 4
- गीता उपदेश - भाग 5
- गीता उपदेश - भाग 6
- गीता उपदेश - भाग 7
- गीता उपदेश - भाग 8
- गीता उपदेश - भाग 9
- गीता उपदेश - भाग 10
- गीता उपदेश - भाग 11
- गीता उपदेश - भाग 12
- गीता उपदेश - भाग 13
- गीता उपदेश - भाग 14
- गीता उपदेश - भाग 15
- गीता उपदेश - भाग 16
- गीता उपदेश - भाग 17
- गीता उपदेश - भाग 18
श्री कृष्ण के 10 सर्वश्रेष्ठ सुविचार
1. पुरुषार्थ और कर्म
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि॥"
- काम करने का अधिकार तुम्हारा है, लेकिन फल की चिंता मत करो। यही भगवद्गीता का मुख्य संदेश है।
2. अहंकार और संहार
- "अहंकार विनाश का प्रमुख कारण है। जब व्यक्ति अहंकार से युक्त होता है, तो वह अपने विनाश की ओर अग्रसर होता है।"
3. सत्य और धर्म
- "धर्म की रक्षा के लिए, मैं युग के युग में आता हूँ। सत्य और धर्म की जीत हमेशा होती है।"
4. भक्ति और आत्मसमर्पण
- "जो व्यक्ति मुझे हर किसी में देखता है और सभी को मुझ में देखता है, वह मेरे लिए सबसे प्रिय है।"
5. निस्वार्थ सेवा
- "निःस्वार्थ सेवा वह है जहां व्यक्ति किसी भी परिणाम या पुरस्कार की उम्मीद के बिना सेवा करता है।"
6. समता और धैर्य
- "समता और धैर्य जीवन में आवश्यक होते हैं। जो व्यक्ति सुख-दुःख में समान रह सकता है, वही सच्चा योगी है।"
7. ज्ञान और विवेक
- "जो बुद्धिमान व्यक्ति है वह अपना कर्म करता रहता है। वह मोह और भय से मुक्त रहता है।"
8. माया और वास्तविकता
- "संसार में माया का खेल है। जिनके पास विवेक की दृष्टि है, वे इस माया से मुक्त हो सकते हैं।"
9. प्रेम और समर्पण
- "प्रेम सबसे उच्च भावना है। जब व्यक्ति अपने ही स्वार्थ से ऊपर उठकर दूसरों के लिए प्रेम और समर्पण करता है, तभी उसका जीवन सार्थक होता है।"
10. वाणी और सत्यता
- "वाणी का महत्व अत्यधिक है। जो व्यक्ति अपनी वाणी में सत्यता और मधुरता का समावेश करता है, उसे समाज में सम्मान मिलता है।"
श्रीमद्भगवद्गीता के सर्वश्रेष्ठ सुविचार
- सम्पूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न होते है, अन्न की उत्पत्ति वर्षा से होती है, वर्षा यज्ञ से होती है और यज्ञ सत्कर्मों से उत्पन्न होने वाला है.
- इस आत्म विनाशकारी नरक के लिए तीन द्वार हैं: वासना, क्रोध, और लालच। इन तीनों को छोड़ दो।
- आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है।
- क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।
- मन बहुत ही चंचल होता है और इसे नियंत्रित करना कठिन है. परन्तु अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है.
- बुद्धिमान व्यक्ति ईश्वर के सिवा और किसी पर निर्भर नहीं रहता.
- न तो यह शरीर तुम्हारा है और न तो तुम इस शरीर के मालिक हो. यह शरीर तत्वों से बना है – आग, जल, वायु पृथ्वी और आकाश. एक दिन यह शरीर इन्ही तत्वों में विलीन हो जाएगा.
- श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। वह (श्रेष्ठ पुरुष) जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करता है, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।
- जो मन को रोक नहीं पाते उनके लिए उनका मन दुश्मन के समान है.
- इसमें कोई शक नहीं है कि जो भी व्यक्ति मुझे याद करते हुए मृत्यु को प्राप्त होता है वह मेरे धाम को प्राप्त होता है.
- तू शास्त्रों में बताए गए अपने धर्म के अनुसार कर्म कर, क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा।
- सभी धर्मों को त्याग कर अर्थात हर आश्रय को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं (श्रीकृष्ण) तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिला दूंगा, इसलिए शोक मत करो।
- जब-जब धर्म का लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए अवतार लेता हूं।
- जिनके पास कोई बंधन नहीं है, वे वास्तव में दूसरों से प्यार कर सकते हैं, क्योंकि उनका प्यार शुद्ध और दिव्य है।
- जो कुछ भी आपको करना है, वह लालच के साथ नहीं, अहंकार के साथ नहीं, ईर्ष्या के साथ नहीं, बल्कि प्यार, करुणा, विनम्रता और भक्ति के साथ।
- जो व्यक्ति जिस भी देवता की पूजा करता है मैं उसी में उसका विश्वास बढ़ाने लगता हूँ.
- इंद्रियों से खुशी पहले अमृत की तरह लगती है, लेकिन अंत में जहर के रूप में कड़वा है।
- मैं ऊष्मा देता हूँ, मैं वर्षाकरता हूँ और रोकता भी हूँ, मैं अमरत्व भी हूँ और मृत्यु भी.
- हथियारों में मैं गड़गड़ाहट हूं, गायों के बीच मैं सुरभि नामक गाय को पूरा करने की इच्छा रखता हूं, वृक्ष में पीपल हूँ, सांपों में मैं वासुकी हूं, मैं प्रजननकर्ता हूं, प्रेम का देवता हूं।
- जो अविवेकीजन ब्राम्हणों से द्वेष रखते है, वे मेरे शत्रु है. जो मनुष्य मेरी भावना से ब्राम्हणों की पूजा करते है, उन्हें संसार में सुख की उपलब्थि होती है और अंत में मेरे धाम के अधिकारी होते है.
- विष्णु भगवान के गुणों का श्रवण और कीर्तन, भगवान का स्मरण, पाद-सेवन, पूजन, वंदन, दास्य, सख्या और आत्म समर्पण यही नवधा-भक्ति है.
- अहो! मनुष्य जन्म सभी जन्मों में श्रेष्ठ है.
- दुःख-सुख को समान समझने वाले जिस धीर पुरुष को ये इन्द्रिय और विषयों के संयोग व्याकुल नहीं करते, वह मोक्ष के योग्य है.
- इस संसार मैं ज्ञान के समान पवित्र करने वाला निःसंदेह कुछ भी नही है.
- अपने लाभ के लिए किया गया काम अज्ञानी काम; खुद के लिए सोचे बिना दुनिया के कल्याण के लिए किया गया काम बुद्धिमान काम।
- प्राणी कर्म का त्याग नही कर सकता, कर्मफल का त्याग ही त्याग है.
- भगवान् धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेते है.
- जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अवतार लेकर आता हूँ. सज्जनों की रक्षा, दुष्टों का विनाश और धर्म की पुनः स्थापना इन तीन कार्यो के लिए मैं प्रत्येक युग में प्रकट हुआ करता हूँ.
- जो पुरुष शस्त्रविधि को त्याग कर अपनी इच्छा अनुसार मनमाना आचरण करता है, वह न तो सिद्धि को प्राप्त होता है, न परमगति को और न सुख को प्राप्त कर पाता है.
- भगवान् का कोई प्रिय, अप्रिय, अपना या पराया आदि नहीं है. उसके लिए सभी प्राणी प्रिय है; क्योंकि वे सबकी आत्मा है.
- जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्र उतारकर नये ग्रहण करता है, उसी प्रकार आत्मा भी पुराना शरीर छोड़कर नये शरीर को ग्रहण करती है.
श्री कृष्ण के अन्य अनमोल वचन
1-10: कर्म का महत्व
- "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" - तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल की चिंता करना तुम्हारा कार्य नहीं।
- "सफलता का मार्ग कर्तव्य से होकर जाता है, कर्म करना ही जीवन का धर्म है।"
- "जो व्यक्ति कर्म में विश्वास करता है, वही जीवन में सफलता पाता है।"
- "कर्म जीवन की दिशा और दशा दोनों तय करता है।"
- "प्रत्येक कर्म के पीछे एक उद्देश्य होना चाहिए, वही तुम्हारे जीवन को सार्थक बनाता है।"
- "कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति को असफलता का भय नहीं होता।"
- "जीवन में कोई भी स्थिति स्थायी नहीं होती, कर्म करते रहो और विश्वास बनाए रखो।"
- "कर्म करते समय कभी यह न सोचो कि क्या मिलेगा, क्योंकि कर्म से ही सब कुछ मिलता है।"
- "कर्तव्य मार्ग से हटकर कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता।"
- "कर्तव्य का पालन ही सच्चा धर्म है।"
11-20: भक्ति और प्रेम
- "भक्ति से ही जीवन में शांति और आनंद प्राप्त होता है।"
- "प्रेम सबसे बड़ा धर्म है।"
- "जो भक्त अपने मन को शुद्ध करता है, वही सच्चा भक्त है।"
- "प्रेम जीवन को संपूर्ण बनाता है।"
- "भक्ति में शक्ति होती है, जिससे सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं।"
- "जो भक्त मुझसे प्रेम करता है, मैं भी उससे प्रेम करता हूँ।"
- "प्रेम और भक्ति ही सच्ची आत्मा की आवाज है।"
- "भगवान की भक्ति में जीवन का हर क्षण आनंदमय हो जाता है।"
- "प्रेम से ही जीवन में सच्ची प्रसन्नता मिलती है।"
- "जो व्यक्ति प्रेम और भक्ति के मार्ग पर चलता है, वही जीवन में सफल होता है।"
21-30: आत्मा और आत्मज्ञान
- "आत्मा अमर है, शरीर नाशवान है।"
- "आत्मज्ञान से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।"
- "आत्मा का कोई विनाश नहीं होता, यह सदा अविनाशी है।"
- "आत्मा का ज्ञान ही सच्ची शिक्षा है।"
- "जो आत्मा का ज्ञान प्राप्त कर लेता है, वह सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है।"
- "आत्मा को जानने से जीवन की सारी उलझनें समाप्त हो जाती हैं।"
- "आत्मज्ञान से ही सच्ची शांति प्राप्त होती है।"
- "आत्मा को समझने से ही जीवन का उद्देश्य स्पष्ट होता है।"
- "आत्मा की शुद्धि से ही व्यक्ति सच्चे सुख की प्राप्ति कर सकता है।"
- "जो आत्मज्ञान प्राप्त कर लेता है, वही जीवन के सही अर्थ को समझ पाता है।"
31-40: सत्य और धर्म
- "सत्य ही जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य है।"
- "धर्म का पालन ही मनुष्य का कर्तव्य है।"
- "सत्य की राह पर चलने से कभी हार नहीं होती।"
- "जो सत्य के मार्ग पर चलता है, उसे कोई पराजित नहीं कर सकता।"
- "धर्म का पालन करना ही जीवन का सच्चा अर्थ है।"
- "सत्य और धर्म से बड़ा कोई पथ नहीं होता।"
- "सत्य का साथ देने वाला व्यक्ति सदा विजयी होता है।"
- "धर्म और सत्य का पालन करने से जीवन में स्थायित्व आता है।"
- "धर्म की रक्षा करने से ही मनुष्य की प्रतिष्ठा बढ़ती है।"
- "सत्य के बिना जीवन निरर्थक होता है।"
41-50: समर्पण और निस्वार्थ सेवा
- "निस्वार्थ सेवा से ही सच्चे धर्म की प्राप्ति होती है।"
- "समर्पण ही जीवन की सच्ची पूजा है।"
- "जो दूसरों की सेवा करता है, वही सच्चा भक्त है।"
- "सेवा और समर्पण से ही जीवन में सफलता प्राप्त होती है।"
- "निस्वार्थ सेवा ही सबसे बड़ा पुण्य है।"
- "सेवा से ही मनुष्य अपने जीवन को सार्थक बना सकता है।"
- "जो व्यक्ति दूसरों की भलाई के लिए कार्य करता है, वही सच्चा धर्मात्मा है।"
- "सेवा में ही सच्चा सुख और शांति है।"
- "समर्पण से ही व्यक्ति अपनी आत्मा को शुद्ध कर सकता है।"
- "निस्वार्थ सेवा और समर्पण से जीवन का उद्देश्य प्राप्त होता है।"
51-60: जीवन और मृत्यु
- "मृत्यु के बाद आत्मा का कोई अंत नहीं होता।"
- "जीवन और मृत्यु केवल आत्मा की यात्रा का एक हिस्सा हैं।"
- "मृत्यु का भय केवल उन्हीं को होता है, जो आत्मा के ज्ञान से अनभिज्ञ हैं।"
- "जीवन और मृत्यु के चक्र को समझने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।"
- "मृत्यु के बाद भी आत्मा अमर रहती है।"
- "जीवन और मृत्यु के बीच आत्मा की यात्रा को समझने से व्यक्ति अपने जीवन को सही दिशा दे सकता है।"
- "मृत्यु केवल आत्मा के लिए एक नया प्रारंभ है।"
- "मृत्यु से डरने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आत्मा अमर है।"
- "जीवन और मृत्यु का संबंध केवल शरीर से होता है, आत्मा अजर और अमर है।"
- "मृत्यु के बाद आत्मा एक नए शरीर में प्रवेश करती है।"
61-70: योग और ध्यान
- "योग से ही मनुष्य आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है।"
- "ध्यान से मनुष्य अपने मन को शुद्ध कर सकता है।"
- "योग और ध्यान से जीवन में संतुलन आता है।"
- "ध्यान से ही व्यक्ति सच्ची शांति प्राप्त कर सकता है।"
- "योग और ध्यान से आत्मा की शुद्धि होती है।"
- "जो व्यक्ति ध्यान करता है, वह जीवन की कठिनाइयों को सहजता से पार कर सकता है।"
- "योग से शरीर, मन और आत्मा का संतुलन होता है।"
- "ध्यान से व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित कर सकता है।"
- "योग जीवन को संतुलित और स्वस्थ बनाता है।"
- "ध्यान से ही आत्मा की शक्ति का जागरण होता है।"
71-80: जीवन का उद्देश्य
- "जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक सुख नहीं है, आत्मा की शुद्धि ही सच्चा उद्देश्य है।"
- "जीवन में सच्चा सुख प्राप्त करने के लिए आत्मज्ञान आवश्यक है।"
- "जीवन का उद्देश्य दूसरों की सेवा और भलाई करना है।"
- "जीवन का सच्चा उद्देश्य आत्मा की उन्नति है।"
- "जो व्यक्ति जीवन के उद्देश्य को समझता है, वही सच्चा सफल होता है।"
- "जीवन का उद्देश्य केवल अपने लिए जीना नहीं है, बल्कि दूसरों के लिए भी जीना है।"
- "जीवन में संतोष प्राप्त करने के लिए अपने कर्तव्यों का पालन करना ही उद्देश्य होना चाहिए।"
- "जीवन का उद्देश्य केवल धन और संपत्ति प्राप्त करना नहीं है, बल्कि आत्मिक उन्नति करना है।"
- "जो व्यक्ति अपने जीवन का उद्देश्य समझता है, वह सभी बाधाओं को पार कर सकता है।"
- "जीवन का सच्चा उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और सेवा करना है।"
81-90: स्वधर्म और कर्तव्य
- "स्वधर्म का पालन करना ही मनुष्य का सबसे बड़ा कर्तव्य है।"
- "जो व्यक्ति स्वधर्म का पालन करता है, वह सदा विजय प्राप्त करता है।"
- "स्वधर्म का पालन करना ही जीवन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।"
- "जो व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करता, वह जीवन में कभी सफल नहीं हो सकता।"
- "कर्तव्य का पालन ही जीवन में सच्ची सफलता का मार्ग है।"
- "स्वधर्म का पालन करने से ही व्यक्ति सच्ची शांति प्राप्त कर सकता है।"
- "कर्तव्य और धर्म का पालन करना ही मनुष्य की सच्ची पहचान है।"
- "स्वधर्म का पालन करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।"
- "स्वधर्म और कर्तव्य का पालन जीवन में सफलता और शांति दोनों प्रदान करता है।"
91-100: मोक्ष और अध्यात्म
- "मोक्ष का मार्ग आत्मज्ञान से होकर जाता है।"
- "अध्यात्म ही मोक्ष की कुंजी है।"
- "मोक्ष की प्राप्ति के लिए मन और आत्मा की शुद्धि आवश्यक है।"
- "मोक्ष का मार्ग केवल भक्ति और सेवा से प्राप्त होता है।"
- "अध्यात्म से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।"
- "मोक्ष की यात्रा आत्मा की शुद्धि से प्रारंभ होती है।"
- "जो व्यक्ति अध्यात्म के मार्ग पर चलता है, वही मोक्ष प्राप्त कर सकता है।"
- "मोक्ष का उद्देश्य केवल आत्मा की उन्नति है।"
- "अध्यात्म के बिना जीवन में मोक्ष प्राप्त नहीं किया जा सकता।"
- "मोक्ष की प्राप्ति केवल सच्ची भक्ति, सेवा और आत्मज्ञान से होती है।"
Krishna quotes in hindi Images, Photos, Pictures
निष्कर्ष (Conclusion)
श्रीकृष्ण के उद्धरणों में जीवन की हर कठिनाई का समाधान छिपा हुआ है। उनकी वाणी में प्रेम, भक्ति, कर्तव्य, और सत्य का ऐसा अद्वितीय संगम है, जो व्यक्ति को उसकी आत्मा की ओर ले जाता है। श्रीकृष्ण के ये उद्धरण हमारे जीवन को एक नई दिशा देने के साथ-साथ हमें आत्मा के वास्तविक स्वरूप का बोध कराते हैं। जीवन की हर परिस्थिति में इन उद्धरणों का पालन करने से हमें शांति, समर्पण और सफलता प्राप्त होती है।
श्रीकृष्ण के उपदेश केवल शब्द नहीं हैं, वे जीवन का सार हैं, जिन्हें समझकर और अपनाकर हम न केवल अपना जीवन सुधार सकते हैं बल्कि उसे और भी महान बना सकते हैं।
"Shree Krishna quotes in hindi | श्री कृष्ण के सर्वश्रेष्ठ सुविचार, अनमोल वचन " यह पोस्ट आपको कैसे लगा कमेंट कर बताए. इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ शेयर करे .
इन्हें भी पढ़े
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें