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30+Shree Krishna quotes in hindi | श्री कृष्ण के सर्वश्रेष्ठ सुविचार, अनमोल वचन

इस आर्टिकल में मैंने महाभारत में अर्जुन के अपने रिश्तेदारों से युद्ध न करने पर श्री कृष्ण द्वारा दिये गए गीता ज्ञान से जुड़े इस पोस्ट में दिया गया है. कृष्ण जी अपने बुद्धि के लिए जाने जाते है. श्रीमद् भगवत् गीता एक ऐसा बुक है जिसमे जीवन से जुड़ी आपके सभी प्रश्नों के उत्तर इसमें मिल जाएगी. आज भागवत गीता भारत नही पूरे विश्व में पढ़ी जाती है. इस बुक का कई भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है. श्रीमद् भगवत् गीता बुक भारत में बहुत पवित्र बुक मना जाता है.

Shree Krishna quotes in hindi


भगवान श्री कृष्ण के सर्वश्रेष्ठ सुविचार, अनमोल वचन (hindi quotes)


श्रीमद् भगवत् गीता Full Video


संपूर्ण भगवद्गीता (हिन्दी में) Full Bhagavad Gita (In Hindi) | Chapters 1-18

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  • गीता उपदेश | Geeta Updesh | Part 18
#1
सम्पूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न होते है, अन्न की उत्पत्ति वर्षा से होती है, वर्षा यज्ञ से होती है और यज्ञ सत्कर्मों से उत्पन्न होने वाला है.

#2
इस आत्म विनाशकारी नरक के लिए तीन द्वार हैं: वासना, क्रोध, और लालच। इन तीनों को छोड़ दो।

#3
आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है।

#4
क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।

#5
मन बहुत ही चंचल होता है और इसे नियंत्रित करना कठिन है. परन्तु अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है.

#6
बुद्धिमान व्यक्ति ईश्वर के सिवा और किसी पर निर्भर नहीं रहता.

#7
न तो यह शरीर तुम्हारा है और न तो तुम इस शरीर के मालिक हो. यह शरीर 5 तत्वों से बना है – आग, जल, वायु पृथ्वी और आकाश. एक दिन यह शरीर इन्ही 5 तत्वों में विलीन हो जाएगा.

#8
श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। वह (श्रेष्ठ पुरुष) जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करता है, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।

#9
जो मन को रोक नहीं पाते उनके लिए उनका मन दुश्मन के समान है.

#10
इसमें कोई शक नहीं है कि जो भी व्यक्ति मुझे याद करते हुए मृत्यु को प्राप्त होता है वह मेरे धाम को प्राप्त होता है.

#11
तू शास्त्रों में बताए गए अपने धर्म के अनुसार कर्म कर, क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा।

#12
सभी धर्मों को त्याग कर अर्थात हर आश्रय को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं (श्रीकृष्ण) तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिला दूंगा, इसलिए शोक मत करो।

#13
जब-जब धर्म का लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए अवतार लेता हूं।

#14
बुरे कर्म करने वाले नीच व्यक्ति मुझे पाने की कोशिश नहीं करे.

#15
जिनके पास कोई बंधन नहीं है, वे वास्तव में दूसरों से प्यार कर सकते हैं, क्योंकि उनका प्यार शुद्ध और दिव्य है।

#16
जो कुछ भी आपको करना है, वह लालच के साथ नहीं, अहंकार के साथ नहीं, ईर्ष्या के साथ नहीं, बल्कि प्यार, करुणा, विनम्रता और भक्ति के साथ।

#17
जो व्यक्ति जिस भी देवता की पूजा करता है मैं उसी में उसका विश्वास बढ़ाने लगता हूँ.

#18
इंद्रियों से खुशी पहले अमृत की तरह लगती है, लेकिन अंत में जहर के रूप में कड़वा है।

#19
मैं ऊष्मा देता हूँ, मैं वर्षाकरता हूँ और रोकता भी हूँ, मैं अमरत्व भी हूँ और मृत्यु भी.

#20
हथियारों में मैं गड़गड़ाहट हूं, गायों के बीच मैं सुरभि नामक गाय को पूरा करने की इच्छा रखता हूं, वृक्ष में पीपल हूँ, सांपों में मैं वासुकी हूं, मैं प्रजननकर्ता हूं, प्रेम का देवता हूं।

#21
जो अविवेकीजन ब्राम्हणों से द्वेष रखते है, वे मेरे शत्रु है. जो मनुष्य मेरी भावना से ब्राम्हणों की पूजा करते है, उन्हें संसार में सुख की उपलब्थि होती है और अंत में मेरे धाम के अधिकारी होते है.

#22
विष्णु भगवान के गुणों का श्रवण और कीर्तन, भगवान का स्मरण, पाद-सेवन, पूजन, वंदन, दास्य, सख्या और आत्म समर्पण यही नवधा-भक्ति है.

#23
अहो! मनुष्य जन्म सभी जन्मों में श्रेष्ठ है.

#24
दुःख-सुख को समान समझने वाले जिस धीर पुरुष को ये इन्द्रिय और विषयों के संयोग व्याकुल नहीं करते, वह मोक्ष के योग्य है.

#25
इस संसार मैं ज्ञान के समान पवित्र करने वाला निःसंदेह कुछ भी नही है.

#26
अपने लाभ के लिए किया गया काम अज्ञानी काम; खुद के लिए सोचे बिना दुनिया के कल्याण के लिए किया गया काम बुद्धिमान काम।

#27
प्राणी कर्म का त्याग नही कर सकता, कर्मफल का त्याग ही त्याग है.

#28
भगवान् धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेते है.

#29
जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अवतार लेकर आता हूँ. सज्जनों की रक्षा, दुष्टों का विनाश और धर्म की पुनः स्थापना इन तीन कार्यो के लिए मैं प्रत्येक युग में प्रकट हुआ करता हूँ.

#30
जो पुरुष शस्त्रविधि को त्याग कर अपनी इच्छा अनुसार मनमाना आचरण करता है, वह न तो सिद्धि को प्राप्त होता है, न परमगति को और न सुख को प्राप्त कर पाता है.

#31
भगवान् का कोई प्रिय, अप्रिय, अपना या पराया आदि नहीं है. उसके लिए सभी प्राणी प्रिय है; क्योंकि वे सबकी आत्मा है.

#32
जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्र उतारकर नये ग्रहण करता है, उसी प्रकार आत्मा भी पुराना शरीर छोड़कर नये शरीर को ग्रहण करती है.

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